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चांद मैं तेरे पास आना चाहती हूॅं

चांद मैं तेरे पास आना चाहती हूं:
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ऊब गयी हूं इस ख़ुदग़र्ज़ दुनिया से,
मैं अब इसे छोड़ना चाहती हूं,
हर इन्सां यहां है मतलब-परस्त 
मै अब इन सब से दूर जाना चाहती हूं,
ख़्वाहिश ले के मिलतै‌ हैं इन्सान यहां पर,
 इन ख़्वाहिश मन्द बन्दों से न मैं कुछ चाहती हूं,
चाॅद मैं तेरे पास आना चाहती हूं।

देखा है यहां पर चमन बहुत हैं,
चमन मे रंग-बिरंगे फूल बहुत हैं,
भूल कर इन फूलों की महक को,
अनसुनी कर चिड़ियों की चहक को,
चांद मो चन्द लम्हे  सोना चाहती हूं,
चांद मैं तेरे पास आना चाहती हूं।

हर पल यहां कोई मतलब-परस्त आता है,
नये नये तरीकों से मुझको बहलाता है,
तन्हा हूं मैं यहां बहक न जाऊं कभी,
मैं अब लोभ-लालच से दूर जाना चाहती हूं,
चांद मैं तेरे पास आना चाहती हूं।
आनन्द कुमार मित्तल, अलीगढ़

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1 Comments

Muskan khan

09-Jan-2023 05:56 PM

Nice 👌

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